Sunday, May 19, 2024
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खुशियां बस यूं ही कायम रहें…..

2016-10-14-4-sspjs-alkaरात की थकान से ग्रसित
आंखों में नींद की खुमारी लिये
सुबह उठते ही वो दौड़ती है
रसोई की ओर
खुले बालों का बनाते हुए
हाथों से जूड़ा
भागती है बेतरतीब सी
इधर से उधर
बिखरे घर को संभालते संभालते
भूल जाती है खुद को सम्हालना
फिर भी पाती है पूरे घर से
सिर्फ झिड़की और उलाहना
एक काम भी ढंग से नहीं कर पाती हो
पता नहीं अपना दिमाग कहां लगाती हो
और वो सब सुनकर भी हो कर सहज
सिर्फ मुस्करा कर रह जाती है
क्योंकि जानती है वो
कि जिस दिन भी वो बोल पड़ेगी
उसकी गृहस्थी की दीवार चरमरा जायेगी
अपनों की खुशियां बस यूं ही कायम रहें
यही सोच कर बस वो मुस्कराती सी
निज जीवन यापन करे।

Written By: Alka Agrawal, Agra (UP)